
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने डिजिटल अरेस्ट और साइबर ठगी के मामलों को गंभीर मानते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), केंद्रीय संचार मंत्रालय, टेलीकॉम कंपनियों और राज्य में संचालित प्राइवेट बैंकों को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने सभी से तीन सप्ताह के भीतर जवाब प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं।
मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंदर और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि साइबर अपराध लगातार बढ़ रहे हैं और इन्हें रोकने के लिए ठोस कदम उठाना आवश्यक है।
सुनवाई में आईजी कानून-व्यवस्था नीलेश आनंद भरणे और एसएसपी साइबर क्राइम नवनीत भुल्लर वर्चुअली पेश हुए। उन्होंने कोर्ट को जानकारी दी कि विभाग ने साइबर अपराध रोकने के लिए एसओपी (SOP) जारी कर दी है। इस पर कोर्ट ने निर्देश दिया कि एसओपी को प्रदेश के प्रत्येक थाने तक पहुंचाया जाए और साथ ही लोगों को जागरूक करने के लिए व्यापक अभियान भी चलाया जाए।
गौरतलब है कि पिछली सुनवाई में एक बड़े साइबर फ्रॉड का खुलासा हुआ था, जिसमें जजों और पुलिस अधिकारियों के नाम से फर्जी गैर-जमानती वारंट (NBW) जारी कर लोगों से जुर्माना वसूला जा रहा था। इस स्कैम में चार प्राइवेट बैंक अकाउंट्स और QR कोड के माध्यम से रुपये ऐंठे गए। जांच में यह भी सामने आया कि देहरादून के एडीजे के नाम से जारी NBW पूरी तरह फर्जी था।
याचिकाकर्ता सुरेंद्र कुमार ने अदालत को बताया कि उन्हें दो अलग-अलग नंबरों से फोन कर 30,000 रुपये जमा करने का दबाव बनाया गया। ठगों ने देहरादून डिस्ट्रिक्ट जज समेत कई स्कैनर अकाउंट्स के नाम भी बताए।
कोर्ट ने इस मामले को जनहित याचिका में तब्दील करते हुए कहा कि प्राइवेट बैंकों की संलिप्तता से इनकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि सभी फर्जी अकाउंट्स इन्हीं बैंकों में खोले गए थे। साथ ही अदालत ने पुलिस और साइबर सेल की सुस्ती पर नाराजगी जताई कि इतने समय बाद भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।